नींम का वो
छोटा सा पेड़,
उग रहा था
आँगन में !
उस में ना
सुंदर फूल थे,
ना कड़वी मीठी निम्बोरियाँ
!
थे तो बस
कुछ कड़वे पत्ते,
और भूरी सी
शाखायें !
माँ ने कहा
इसे काट देते
हैं,
इस का क्या
काम है ? इस
ने बड़ा होना
है,
और घर की
दीवारों को करना
है कमज़ोर !
पर कुछ था,
जो उस पेड़
से डोर से
जुड़ी थी !
मैने कभी उस
से दान्तून बनाया,
और कभी
पत्तियों को पानी
मैं उबाल के
नहाया !
फिर एक दिन
दिखा मुझे एक
अनोखा सा दृश्य,
छोटा सा घोंसला
और दो चिड़ियाँ,
उन के तीन
अंडे और चेह्चहाने
की आवाज़ !
फिर क्या था
मैने उन्हे रोज़
देखना ,
और इंतज़ार करना कब
आएँगे चूज़े !
नींम थोड़ा बड़ा हुआ
और चूज़े भी
आए,
वो बड़े हुए
और उड़ भी
गये !
नींम मैं फिर
सफेद सुंदर फूल
आए,
और फिर छोटी
छोटी निम्बोरियाँ !
अब तो मैं
उसे रोज़ देखती
और खुश होती,
कभी उस से
बात करती कभी
उस की डाल
हिलाती !
देखते हे देखते
नींम ताड़ सा
हो गया !
दीवार में जैसे
ही एक दिन
दरार सी दिखी,
सब ने कहा
नींम को कटवाओ !
बस मैं अकेली
नींम के पक्ष
में रह गयी !
क्या कुल्हाड़ी क्या दरांती
नींम पर सब
चली,
मेरी ज़िद में
माँ
ने नींम का
ठूंठ भर रहने
दिया !
अब वो कद
मैं उतना ही
था, जितना मैने
पहली बार देखा
था !
बस ना पत्तियाँ,
ना शाखायें, ना
फूल !
नींम था ,पर
बस नींम सा
ना रहा !
मानो एक सखी
की विदाई आँगन
सूना कर गयी !
कड़वे नींम की
मीठी कुछ यादें
ही रह गयीं !
मौसम बदला,गर्मी
आई धूप अब
कुछ तेज़ लगने
लगी,
नींम की छाया
की कमी सब
को खलने लगी!
नींम के उस
ठूंठ को देख
देख मौसम यूँ
ही बदल गये !
एक दिन सुबह सूखे से
दिखने वाले ठूंठ
पर,
अचानक मैने देखी
दो नन्ही सी
पत्तियाँ !
बसंत आया और
नयी कोपलें,
नींम का वो
जीवट पेड़ फिर
हरा हुआ !
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